प्रेमचंद.जयंती पर कथा.संवाद

 
प्रेमचंद.जयंती पर कथा.संवाद 

शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग में हिन्दी.विभाग द्वारा आज दिनांक 30.7.2022 को प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष्य में प्रख्यात कथाकार श्री हरि भटनागर की उपस्थिति में कथा.संवाद (कहानी पाठ एवं बातचीत) का आयोजन किया गया। 
ष्कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना से हुआ। विभाग के अध्यक्ष डॉ. अभिनेष सुराना ने स्वागत उद्बोधन के साथ प्रेमचंद की साहित्यिक संवेदना पर प्रकाष डाला। उन्होंने कहा प्रेमचंद हमेषा शोषित.पीड़ित जन के पक्ष में खड़े होते नजर आते हैं। प्रेमचंद का साहित्य भारतीय समाज का दर्पण है। विभाग के प्राध्यापक डॉ. जय प्रकाष ने अतिथि वक्ता कथाकार हरि भटनागर का परिचय देते हुए उनकी प्रमुख कहानियों तथा उनके कथा.षिल्प का उल्लेख किया। 
महाविद्यालय के प्राचार्य श्री एम.ए. सिध्दिकी ने प्रेमचंद.जयंती पर कथा.संवाद के आयोजन के लिए बधाई दी। इस अवसर उन्होंने अपने संबोधन में कहा प्रेमचंद एक लेखक के रूप में साधारण.जन के बीच लोकप्रिय थे। उनकी पंच.परमेष्वर कहानी न्याय के लिए संघर्ष हमेषा याद की जाती रहेगी। 
अतिथि वक्ता श्री हरि भटनागर ने अपनी श्घोसलाश् कहानी का पाठ किया। कहानी पाठ के बाद विद्यार्थियों तथा शोध.छात्रों ने कहानी.कला तथा उनकी कहानियों के बारे में अनेक प्रष्न किये।   श्री भटनागर ने इन प्रश्नों का बहुत ही सहज.सरल जवाब दिया। उन्होंने कहा - कहानी दुनिया को खुली आखों से देखने.समझने से बनती है। हम जिन्हें कमजोर समझते है, श्संगठित होकर वे भी ताकतवर हो जाते हैश्। वह भी अन्याय का प्रतिरोध कर सकते है। उन्होंने कहानी लेखन के लिए सूक्ष्म दृष्टि तथा उपयुक्त भाषा के तलाष को आवष्यक बताया। 
उनके घोसला कहानी का मूल स्वर अस्तित्व की लड़ाई है। एक पक्षी अपने घोसला बचाने के लिए लड़ सकता है तो आदमी व्यवस्था की विदु्रपता के विरूध्द क्यों नही लड़ सकता?
कथा.संवाद का यह कार्यक्रम छात्र.छात्राओं के लिए ज्ञानवर्धक एवं प्रेरणादायी रहा। इस कार्यक्रम में लगभग 150 विद्यार्थी तथा 25 शोधार्थियों ने भाग लिया। कार्यक्रम में नगर के साहित्यकार श्री शरद कोकाष, श्री बुध्दिलाल पाल, श्री नासिर अहमद सिंकदर, डॉ. अम्बरीष त्रिपाठी, डॉ. दुर्गा शुक्ला विषेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम को सफल बनाने में विभाग के प्राध्यापक डॉ. बलजीत कौर, डॉ. कृष्णा चटर्जी का योगदान रहा। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रजनीष उमरे ने तथा आभार प्रदर्षन प्रो. थानसिंह वर्मा ने किया।