Parsai Jayanti 2022

 
प्रेस विज्ञप्ति 
व्यंग्य परसाई के रचनाओं के भीतर से प्रवाहित होता है - डाॅ. जयप्रकाष 
परसाई जी 20वीं शताब्दी के महत्वपूर्ण लेखक थे। उन्होंने अपनी गहन अन्र्तदृष्टि से समाज की विसंगतियों तथा विद्वपताओं को देखा तथा समाज को अपनी रचनाओं के आईने में दिखाया। उक्त विचार हिन्दी विभाग द्वारा परसाई जयंती पर आयोजित संगोष्ठी में विभाग के प्राध्यापक डाॅ. जय प्रकाष ने व्यक्त किये। उन्होंने आगे कहा कि ऐसा नहीं है कि हिन्दी में परसाई जी अकेले व्यंग्यकार थे परसाई जी से पूर्व कबीर, भारतेन्दु और बालमुकुन्द गुप्त भी सषक्त व्यंग्यकार रहें है। परसाई उन सबसे अलग इस अर्थ में है कि वे जीवन तथा समाज को वैज्ञानिक तथा तार्किक ढंग से देखते थे, इसीलिए व्यंग्य परसाई जी की रचनाओं के भीतर से प्रवाहित होता है। 
महाविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक डाॅ. एम.ए. सिद्दीकी ने कहा कि पुराने जमाने में पढ़ा लिखा उसी को समझा जाता था जो भाषा और गणित जानता हो। साहित्य का संबंध भाषा से है। परसाई जी जैसे साहित्यकार को समझने के लिए भाषा की समझ और संवेदना की आवष्यकता है।    प्रो. थानसिंह वर्मा ने कहा परसाई जी की रचनाओं में आजादी के बाद के भारत की तस्वीर देखी जा सकती है। परसाई जी ने राजनीति, धर्म, सम्प्रदाय प्रषासन तथा सामाजिक जीवन में व्याप्त विसंगतियों पर करारा व्यंग्य किया है। विभाग के अध्यक्ष डाॅ. अभिनेष सुराना ने परसाई जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाष डालते हुए बताया कि व्यंग्य विसंगतियों से उपजता है। परसाई जी के व्यंग्य नष्तर की तरह चूभने वाले होते है, जिसको लक्ष्य किया जाता है वह तिलमिला उठता है। छात्रा सोनाली ने ष्ईष्वर की सरकारष् तथा मोनिका साहू ष्समझौताष् नामक परसाई जी के व्यंग्य रचनाओं का पाठ किया। 
कार्यक्रम में विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डाॅ. बलजीत कौर तथा डाॅ. कृष्णा चटर्जी एवं अतिथि व्याख्याता डाॅ. रजनीष उमरे उपस्थित थे। कार्यक्रम में एम.ए. हिन्दी के अलावा विभिन्न कक्षाओं के साहित्य के विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. कृष्णा चटर्जी ने तथा आभार प्रदर्षन डाॅ. बलजीत कौर ने किया।