कहानी सवा सेर गेहूँ का सच आज भी हकीकत है

 
कहानी सवा सेर गेहूँ का सच आज भी हकीकत है 
शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग के हिन्दी विभाग द्वारा स्नातक के पाठ्यक्रम में संकलित कथाकर प्रेमचंद की कहानी सवा सेर गेहूँ पर आधारित फिल्म का प्रदर्शन महाविद्द्यालय के प्राचार्य डॉ. आर.एन.सिंह के निर्देशन तथा विभागाद्यक्ष डॉ. अभिनेष सुराना के मार्गदर्शन में सर्वपल्ली राधाकृष्णन सभागार में किया गया। फिल्म प्रदर्शन के पूर्व हिन्ही विभाग के प्राध्यापक थानसिंह वर्मा ने सभागार में उपस्थित विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रेमचंद हिन्दी के पहले कथाकार हैं जिन्होंने ग्रामीण भारत के मजदूर-किसान के शोषण उत्पीडन तथा जीवन संघर्ष को अपनी कथा का विषय बनाया। हिन्दी कथा-साहित्य में प्रेमचंद ने पहली बार सामाजिक यथार्थ को सामने लाया। प्रेमचंद ने कथा-साहित्य का स्वरूप बदल दिया जो महज मन बहलाव के लिए होता था उसे उन्होंने जीवन की वास्तविकता से जोड़ाकर उद्देश्यपरक बनाय।  
कहानी सवा सेर गेहूँ का मुख्य पात्र शंकर भोला-भाला है, जो अपने सहज स्वभाव के कारण एक संत के स्वागत सत्कार के लिए पंडित से साहुकर बने सूदखोर से सवा सेर गेहूँ उधर लेकर षड्यंत्र का शिकार होता है तथा अपना सर्वस्व खो कर बंधवा मजदूर बनने पर विवश हो जाता है। प्रेमचन जी ने इस कहानी में आर्थिक शोषण के साथ धार्मिक शोषण की परतों का पर्दाफास किया है। प्रेमचंद ने यह कहानी अपने समय के समाज को देखते हुए 1910 में लिखी थी पर आजादी के इतने वर्षों बाद भी शोषण की यह प्रक्रिया जारी है।
इस फिल्म को देखने के लिए स्नातक प्रथम सेमेस्टर विद्यार्थियों में बहुत उत्साह देखा गया। महाविद्यालय के लगभग 400 विद्यार्थियों के साथ शोध छात्र संग्राम सिंह निराला, बेलमती एवं निर्मला व हिन्दी विभाग के प्राध्यापक डॉ. बलजीत कौर, डॉ. जयप्रकाश, डॉ. कृष्णा चटर्जी, अन्नपूर्ण महतो, डॉ. सरिता मिश्र उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रजनीश उमरे ने किया।