NOTES


NOTES

SEMESTER -1

HUMAN GROWTH AND DEVELOPMENT

UNIT-1

Life Span Heredity and Environment

मानव जीवन का विकास: चरण और परिप्रेक्ष्य

(Human Life Development: Stages andPerspectives)

1. परिचय (Introduction)

मानव विकास एक आजीवन (Lifelong) और निरंतर (Continuous) प्रक्रियाहै जो गर्भधारण से शुरू होकर मृत्यु तक चलती रहती है। यह प्रक्रिया केवल शारीरिक वृद्धितक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें संज्ञानात्मक (Cognitive), सामाजिक (Social) और संवेगात्मक(Emotional) परिवर्तन भी शामिल हैं। इस विकास को बेहतर ढंग से समझने के लिए इसे विभिन्नचरणों में बाँटा जाता है और इसका अध्ययन जीवन काल परिप्रेक्ष्य नामक एक व्यापक दृष्टिकोणसे किया जाता है।

मानव विकास से संबंधित महत्वपूर्ण परिभाषाएँ

परिभाषा (Definition):

1.   "विकासकेवल वृद्धि तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें व्यवस्थित और प्रगतिशील क्रम में परिवर्तनशामिल होते हैं, जिसका उद्देश्य परिपक्वता (Maturity) के लक्ष्य की ओर अग्रसर होनाहोता है। विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नई विशेषताएँ और क्षमताएँ प्रकट होती हैं।"acc to एच. बी. हरलॉक (H. B. Hurlock)

2.   "मानवविकास एक आजीवन चलने वाली (Lifelong), बहुआयामी (Multidimensional), बहुदिशात्मक(Multidirectional) और अत्यधिक लचीली (Highly Plastic) प्रक्रिया है जो कई संदर्भों(Contexts) और अंतःक्रियाओं (Interactions) से प्रभावित होती है।" acc to पॉलबाल्ट्स (Paul Baltes)

2. जीवन काल के चरण (Stages of LifeSpan)

मनोवैज्ञानिकों ने मानव जीवन काल को कई चरणों में विभाजित किया है, जिनमें से मुख्य चरण इस प्रकार हैं:

क्रम

चरण (Stage)

अनुमानित आयु सीमा (Approx. Age Range)

मुख्य विशेषताएँ (Key Characteristics)

1

गर्भावस्था (Prenatal Period)

गर्भधारण से जन्म तक

तीव्रतम शारीरिक वृद्धि और अंग निर्माण। विकास की नींव।

2

शैशवावस्था (Infancy)

जन्म से 2 वर्ष

मूलभूत मोटर कौशल (चलना, पकड़ना) और भाषा की शुरुआत। दुनिया पर निर्भरता।

.3

प्रारंभिक बाल्यावस्था (Early Childhood)

2 से 6 वर्ष

'खेलने की आयु' कल्पनाशील सोच, भाषा का तेजी से विकास, सामाजिक कौशल की शुरुआत।

4

मध्य और उत्तर बाल्यावस्था (Middle & Late Childhood)

6 से 11 वर्ष

'स्कूल की आयु' तार्किक सोच का विकास, सामाजिक तुलना, उपलब्धि पर ध्यान।

5

किशोरावस्था (Adolescence)

11 से 18/20 वर्ष

पहचान संकट (Identity Crisis) शारीरिक परिपक्वता (यौवन), स्वतंत्रता की इच्छा, अमूर्त (Abstract) सोच।

6

प्रारंभिक प्रौढ़ावस्था (Early Adulthood)

20 से 40 वर्ष

करियर की स्थापना, घनिष्ठ संबंध (विवाह), परिवार का निर्माण।

7

मध्य प्रौढ़ावस्था (Middle Adulthood)

40 से 65 वर्ष

करियर में शिखर, अगली पीढ़ी को दिशा देना, शारीरिक शक्ति में धीरे-धीरे कमी।

8

उत्तर प्रौढ़ावस्था/वृद्धावस्था (Late Adulthood)

65 वर्ष और उससे अधिक

जीवन का मूल्यांकन, सेवानिवृत्ति (Retirement), स्वास्थ्य में गिरावट, ज्ञान और अनुभव का संचय।

 

 

प्रणाली उपागम (सिस्टम एप्रोच) द्वारा जीवनकाल का विकास

(The System Approach to Life SpanDevelopment)

1. परिचय (Introduction)

'प्रणाली उपागम' यह मानता है कि मानव विकास एक जटिल, समग्र(Holistic) प्रक्रिया है। यह उपागम व्यक्ति के विकास को केवल आंतरिक (जैविक/आनुवंशिक)या केवल बाह्य (पर्यावरण) कारकों का परिणाम मानने के बजाय, यह देखता है कि कैसे येसभी कारक एक आपस में जुड़ी हुई प्रणाली की तरह काम करते हैं।

2. परिभाषा (Definition)

"प्रणाली उपागम मानवविकास को एक गतिशील प्रक्रिया के रूप में परिभाषित करता है, जहाँ व्यक्ति और उसका बहु-स्तरीयपर्यावरण निरंतर एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, जिससे व्यक्ति के विकास में परिवर्तनऔर अनुकूलन (Adaptation) होता है।"यूरी ब्रॉनफेनब्रेनर (Urie Bronfenbrenner)का पारिस्थितिक प्रणाली सिद्धांत (Ecological Systems Theory)

  • मुख्य विचार: विकास किसी एक कारक से नहीं होता, बल्कि पारस्परिक लेनदेन (Bidirectional Transactions) से होता है। बच्चा अपने पर्यावरण को प्रभावित करता है और पर्यावरण बच्चे को प्रभावित करता है।

3. विशेषताएँ/प्रणाली के स्तर(Characteristics/Levels of the System)

ब्रॉनफेनब्रेनर के सिद्धांत के अनुसार, विकास का वातावरणपाँच परस्पर संबंधित प्रणालियों (Systems) में संगठित है:

 

क्रम

प्रणाली (System)

परिभाषा (Definition)

उदाहरण (Example)

लघुमंडल (Microsystem)

व्यक्ति के सबसे निकटतम वातावरण, जहाँ सीधी अंतःक्रिया होती है।

परिवार, विद्यालय, पड़ोस, मित्र-मंडली, शिक्षक।

मध्यमंडल (Mesosystem)

लघुमंडलों के बीच के संबंध। एक प्रणाली का दूसरी पर प्रभाव।

माता-पिता और शिक्षक के बीच संवाद; घर और स्कूल के बीच संबंध।

बृहतमंडल (Exosystem)

वह बाह्य सामाजिक सेटिंग्स, जिसमें व्यक्ति सीधे भाग नहीं लेता, लेकिन जो उसे प्रभावित करती हैं।

माता-पिता का कार्यस्थल, समुदाय की स्वास्थ्य सेवाएँ, स्थानीय मीडिया।

वृहत्तमंडल (Macrosystem)

व्यापक सांस्कृतिक मूल्य, रीति-रिवाज, कानून और सामाजिक-आर्थिक नीतियाँ।

देश का कानून, धर्म, संस्कृति, सामाजिक विचारधारा।

कालमंडल (Chronosystem)

जीवन की घटनाओं और पर्यावरण की संरचनाओं में समय के साथ होने वाले परिवर्तन।

तलाक का प्रभाव, महामारी का प्रभाव, ऐतिहासिक युद्ध या आर्थिक मंदी।

 

4. महत्व/उपयोगिता (Importance)

1.   समग्र विश्लेषण: यह उपागम विकास के किसी एक पहलू(जैसे केवल जीन) पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, सभी पहलुओं को एक साथ समझने में मददकरता है।

2.   हस्तक्षेप योजना (Intervention Planning): चूंकियह बहु-स्तरीय प्रभावों को पहचानता है, इसलिए विकास की समस्याओं को दूर करने के लिएकेवल बच्चे पर नहीं, बल्कि उसके परिवार, स्कूल और समाज पर भी काम करने की रणनीति बनाईजा सकती है।

3.   अनुकूलन को समझना: यह बताता है कि व्यक्ति जीवनभर अपने विभिन्न वातावरणों में आने वाली चुनौतियों के प्रति कैसे अनुकूलन (Adapt) औरलचीलापन (Resilience) प्रदर्शित करता है।

4.   सांस्कृतिक संवेदनशीलता: वृहत्तमंडल(Macrosystem) को शामिल करके, यह उपागम सांस्कृतिक और ऐतिहासिक भिन्नताओं के महत्वको उजागर करता है।

5. संदर्भ (References)

    • The Ecology of Human Development (लेखक: Urie Bronfenbrenner)

 

वृद्धि और विकास के प्रमुख सिद्धांत

(Principles of Growth and Development)

1. निरंतरता का सिद्धांत (Principle ofContinuity)

  • मूल: विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो कभी रुकती नहीं है। यह गर्भाधान (Conception) से शुरू होकर मृत्यु (Death) तक निरंतर चलती रहती है।
  • समझ: जबकि वृद्धि (Growth) एक समय के बाद रुक जाती है (जैसे ऊँचाई), विकास (मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक) जीवन भर जारी रहता है।

2. व्यक्तिगत भिन्नता का सिद्धांत(Principle of Individual Differences)

  • मूल: दो व्यक्तियों में, यहाँ तक कि जुड़वा बच्चों में भी, विकास की गति, दर और तरीका कभी भी बिल्कुल समान नहीं होता है।
  • समझ: प्रत्येक व्यक्ति अपने आनुवंशिकता (Heredity) और वातावरण (Environment) के आधार पर अपनी गति से विकसित होता है।

3. क्रमबद्धता या एकरूपता का सिद्धांत(Principle of Uniformity of Pattern)

  • मूल: हालाँकि विकास की गति अलग-अलग हो सकती है, लेकिन विकास का क्रम (Pattern/Sequence) लगभग सभी बच्चों में समान होता है।
  • उदाहरण: सभी बच्चे पहले बैठना, फिर खड़े होना और फिर चलना सीखते हैं। यह क्रम नहीं बदलता।

4. विकास की दिशा का सिद्धांत (Principle ofDirection/Sequence)

विकास दो मुख्य दिशाओं का पालन करता है:

  • मस्तकाधोमुखी/शीर्षगामी (Cephalocaudal Principle): विकास सिर से पैर की ओर होता है। बच्चा पहले सिर और भुजाओं पर नियंत्रण सीखता है, फिर धड़ पर, और अंत में पैरों पर (जैसे चलना)।
  • समीप-दूर (Proximodistal Principle): विकास शरीर के केंद्र (धड़) से बाहर की ओर (बाहरी अंगों) की ओर होता है। बच्चा पहले भुजाओं का प्रयोग करना सीखता है, फिर हाथ का, और अंत में उंगलियों का (जैसे पेन पकड़ना)।

5. सामान्य से विशिष्ट प्रतिक्रियाओं का सिद्धांत(Principle of General to Specific)

  • मूल: बच्चा पहले सामान्य प्रतिक्रियाएँ करता है, और धीरे-धीरे विशिष्ट क्रियाओं की ओर बढ़ता है।
  • उदाहरण: रोते समय शिशु अपने पूरे शरीर को हिलाता है (सामान्य प्रतिक्रिया), लेकिन बाद में केवल आँख या मुँह के भाव से रोने को व्यक्त करता है (विशिष्ट प्रतिक्रिया)।

6. एकीकरण का सिद्धांत (Principle ofIntegration)

  • मूल: विकास में व्यक्ति पहले किसी अंग के अलग-अलग भागों को सीखता है, और फिर उन भागों को एक साथ जोड़कर उपयोग करना सीखता है।
  • उदाहरण: बच्चा पहले केवल हाथ चलाना सीखता है, फिर केवल उंगलियाँ, और अंत में हाथ और उंगलियों को एक साथ इस्तेमाल करके किसी वस्तु को कुशलता से पकड़ना सीखता है।

7. वंशानुक्रम और वातावरण की अंतःक्रिया का सिद्धांत(Principle of Interaction of Heredity and Environment)

  • मूल: विकास केवल आनुवंशिकता या केवल वातावरण का परिणाम नहीं है, बल्कि इन दोनों के बीच की जटिल अंतःक्रिया (Complex Interaction) का परिणाम है।

8. विकास की गति में भिन्नता का सिद्धांत(Principle of Differential Rate)

  • मूल: जीवन के विभिन्न चरणों में विकास की गति अलग-अलग होती है।
  • उदाहरण: शैशवावस्था (Infancy) में शारीरिक विकास बहुत तीव्र होता है, बाल्यावस्था में धीमा हो जाता है, और किशोरावस्था (Adolescence) में फिर से तीव्र हो जाता है।

 

UNIT-II

Theories Of Human Development

सिगमंड फ्रायड का मनो-लैंगिक विकास सिद्धांत

(Psychosexual Theory)

व्यक्तित्व के विकास के लिए एक मौलिक, लेकिन विवादास्पद,ढाँचा प्रस्तुत करता है। फ्रायड के अनुसार, व्यक्ति का व्यक्तित्व मुख्य रूप से बचपनके अनुभवों, विशेष रूप से पांच वर्ष की आयु से पहले, द्वारा स्थापित होता है।

इस सिद्धांत का मुख्य आधार लिबिडो (Libido) नामक मानसिक ऊर्जाहै, जो जीवन की मूल-प्रवृत्तियों (Eros) से जुड़ी होती है। फ्रायड के अनुसार, यह ऊर्जाअलग-अलग आयु में शरीर के अलग-अलग क्षेत्रों पर केंद्रित होती है, जिन्हें कामोत्तेजकक्षेत्र (Erogenous Zones) कहा जाता है। यदि इन चरणों में बच्चे की ज़रूरतों को बहुतअधिक संतुष्ट किया जाता है या उन्हें पूरी तरह से दबा दिया जाता है, तो व्यक्ति मेंउस चरण से संबंधित स्थिरीकरण (Fixation) हो सकता है, जो वयस्क व्यक्तित्व को प्रभावितकरता है।

 

परिभाषा (Definition):

"मनो लैंगिक विकास उन विकासात्मक चरणों की एक श्रृंखलाहै जिसमें शिशु की आनंददायक/कामोत्तेजक ऊर्जा (libido) शरीर के विभिन्न कामुक क्षेत्रों(erogenous zones) पर केंद्रित होती है। इन चरणों को सफलतापूर्वक हल करना स्वस्थ व्यक्तित्वके विकास के लिए महत्वपूर्ण है।" acc to सिगमंड फ्रायड (1856-1939)

मनो-लैंगिक विकास के पाँच चरण निम्नलिखित हैं:

चरण (Stage)

अनुमानित आयु सीमा (Age Range)

कामोत्तेजक क्षेत्र (Erogenous Zone)

मुख्य विशेषताएँ और संघर्ष (Conflict)

1. मुखावस्था (Oral Stage)

जन्म से 1 वर्ष तक

मुख (Mouth)

शिशु का सुख चूसने, काटने, निगलने और खाने जैसी मुख संबंधी गतिविधियों पर केंद्रित होता है। दूध छुड़ाना (Weaning) मुख्य संघर्ष है।

2. गुदावस्था (Anal Stage)

1 से 3 वर्ष तक

गुदा (Anus)

लिबिडो का केंद्र गुदा क्षेत्र पर चला जाता है। मल-मूत्र त्याग पर नियंत्रण सीखना (शौचालय प्रशिक्षण/Toilet Training) मुख्य संघर्ष है।

3. लिंगावस्था (Phallic Stage)

3 से 6 वर्ष तक

जननांग (Genitals)

बच्चा अपने और विपरीत लिंग के बीच शारीरिक अंतरों की खोज करता है। ओडिपस कॉम्प्लेक्स (लड़कों में) और इलेक्ट्रा कॉम्प्लेक्स (लड़कियों में) का उदय होता है।

4. प्रसुप्तावस्था (Latency Stage)

6 वर्ष से यौवनारंभ तक

कोई विशिष्ट क्षेत्र नहीं (कामुक भावनाएँ निष्क्रिय)

इस चरण में यौन ऊर्जा को दबा दिया जाता है (सुप्त अवस्था में)। बच्चे की ऊर्जा शिक्षा, सामाजिक कौशल और समलिंगी मित्रों के साथ गतिविधियों पर केंद्रित होती है।

5. जननांग अवस्था (Genital Stage)

यौवनारंभ से वयस्कता तक

परिपक्व जननांग (Mature Genitals)

लिबिडो फिर से सक्रिय हो जाता है और परिपक्व यौन रुचि विपरीत लिंग के प्रति निर्देशित होती है। यह स्वस्थ, स्थायी संबंध बनाने की क्षमता की ओर ले जाता है।

 

मुख्य अवधारणाएँ:

  • ओडिपस कॉम्प्लेक्स: लड़कों में अपनी माँ के प्रति आकर्षण और पिता को प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखने की भावना।
  • इलेक्ट्रा कॉम्प्लेक्स: लड़कियों में अपने पिता के प्रति आकर्षण और माँ को प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखने की भावना (मूल रूप से जुंग द्वारा दिया गया)।
  • स्थिरीकरण (Fixation): किसी भी चरण के संघर्ष को सफलतापूर्वक हल न कर पाने पर उस चरण की ऊर्जा का वहीं अटक जाना, जिसके परिणामस्वरूप वयस्कता में विशिष्ट व्यक्तित्व समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

 

 

 

एरिक एरिक्सन का मनोसामाजिक सिद्धांत

(Psychosocial Theory)

मानव विकास को जन्म से लेकर मृत्यु तक चलने वाली एक प्रक्रियाके रूप में देखता है। फ्रायड के मनो-लैंगिक सिद्धांत के विपरीत, एरिक्सन सामाजिक औरसांस्कृतिक प्रभावों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं और विकास को जीवन भर चलने वालामानते हैं।

एरिक्सन के अनुसार, व्यक्तित्व का विकास आठ क्रमिक चरणोंके माध्यम से होता है। प्रत्येक चरण एक मनोसामाजिक संकट (Psychosocial Crisis) या द्वंद्वसे चिह्नित होता है, जिसका सफल समाधान व्यक्ति में एक विशिष्ट मूल गुण (EgoVirtue/Strength) विकसित करता है।

एरिक्सन के मनोसामाजिक विकास के 8 चरण (Erikson's 8Stages of Psychosocial Development)

चरण (Stage)

अनुमानित आयु (Approx. Age)

मनोसामाजिक संकट (Psychosocial Crisis)

सफल समाधान से प्राप्त मूल गुण (Virtue Gained)

1.

जन्म से 18 माह

विश्वास बनाम अविश्वास (Trust vs. Mistrust)

आशा (Hope)

2.

18 माह से 3 वर्ष

स्वायत्तता बनाम शर्म और संदेह (Autonomy vs. Shame and Doubt)

इच्छाशक्ति (Will)

3.

3 से 5 वर्ष

पहल बनाम अपराध-बोध (Initiative vs. Guilt)

उद्देश्य (Purpose)

4.

5 से 12 वर्ष

उद्योग बनाम हीनता (Industry vs. Inferiority)

सामर्थ्य/क्षमता (Competence)

5.

12 से 18 वर्ष

पहचान बनाम भूमिका भ्रम (Identity vs. Role Confusion)

कर्तव्यनिष्ठा (Fidelity)

6.

18 से 40 वर्ष

घनिष्ठता बनाम अलगाव (Intimacy vs. Isolation)

प्रेम (Love)

7.

40 से 65 वर्ष

जननात्मकता बनाम ठहराव (Generativity vs. Stagnation)

देखभाल (Care)

8.

65 वर्ष और उससे अधिक

अखंडता बनाम निराशा (Ego Integrity vs. Despair)

बुद्धिमता/ज्ञान (Wisdom)

 

प्रत्येक चरण का संक्षिप्त विवरण

  • विश्वास बनाम अविश्वास: शिशु अपनी देखभाल करने वाले (मुख्य रूप से माँ) से निरंतरता और सुरक्षा की अपेक्षा करता है। सफल देखभाल से विश्वास का भाव विकसित होता है।
  • स्वायत्तता बनाम शर्म और संदेह: बच्चा अपने शारीरिक कौशल, जैसे कि शौचालय प्रशिक्षण और खुद से कपड़े पहनना, पर नियंत्रण सीखता है। प्रोत्साहन से स्वायत्तता आती है, जबकि अत्यधिक नियंत्रण से शर्म और संदेह।
  • पहल बनाम अपराध-बोध: बच्चा खेल और सामाजिक बातचीत के माध्यम से अपने पर्यावरण पर पहल करना और नियंत्रण जताना सीखता है। आलोचना से अपराध-बोध हो सकता है।
  • उद्योग बनाम हीनता: स्कूल और सामाजिक समूह में प्रवेश से बच्चे में कौशल (Skill) और उद्योग (परिश्रम) की भावना विकसित होती है। यदि बच्चा स्वयं को अक्षम महसूस करता है, तो हीनता की भावना आती है।
  • पहचान बनाम भूमिका भ्रम: किशोर "मैं कौन हूँ?" जैसे सवालों का जवाब खोजने के लिए विभिन्न भूमिकाओं और विचारों के साथ प्रयोग करते हैं, जिससे पहचान (Identity) स्थापित होती है।
  • घनिष्ठता बनाम अलगाव: युवा वयस्क दूसरों के साथ प्रेम और करीबी घनिष्ठ संबंध बनाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इसमें विफलता अलगाव (Isolation) की ओर ले जाती है।
  • जननात्मकता बनाम ठहराव: मध्य वयस्क भविष्य की पीढ़ियों के मार्गदर्शन, काम और सामुदायिक गतिविधियों के माध्यम से दुनिया में योगदान (Generativity) देने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ऐसा करने में विफल रहने से ठहराव (Stagnation) का भाव आता है।
  • अखंडता बनाम निराशा: वृद्ध व्यक्ति अपने जीवन पर एक नज़र डालते हैं। यदि वे जीवन को सार्थक पाते हैं, तो उनमें अखंडता (Integrity) की भावना आती है। यदि नहीं, तो उन्हें निराशा (Despair) होती है।

एरिक्सन का सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि हर चरण कासफल समाधान जीवन के बाद के चरणों के लिए एक स्वस्थ नींव रखता है।

LEARNING THEORIES AND JEAN PIAGETSTHEORY

सीखने के सिद्धांत

सीखने के सिद्धांत (Learning Theories) मनोविज्ञान और शिक्षाके क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं, जो यह समझाते हैं कि लोग और जानवर कैसे सीखते हैं,ज्ञान प्राप्त करते हैं और व्यवहार को बदलते हैं। इन सिद्धांतों को मोटे तौर पर तीनमुख्य श्रेणियों में बांटा गया है:

1.   व्यवहारवाद (Behaviorism): यह मानता है कि सीखनापर्यावरण में उद्दीपन (stimuli) और प्रतिक्रिया (responses) के बीच सहसंबंधों का परिणामहै। इसमें शास्त्रीय अनुबंधन (Classical Conditioning- जैसे पावलॉव) और क्रियाप्रसूतअनुबंधन (Operant Conditioning- जैसे स्किनर) शामिल हैं।

2.   संज्ञानात्मक सिद्धांत (CognitiveTheories): यह सीखने को एक आंतरिक मानसिक प्रक्रिया के रूप में देखता है, जिसमें सूचनाका प्रसंस्करण (information processing), स्मृति (memory), धारणा (perception), औरसमस्या-समाधान (problem-solving) शामिल है। जीन पियाजे का सिद्धांत इस श्रेणी का एकप्रमुख उदाहरण है।

3.   सामाजिक और सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत(Social and Socio-Cultural Theories): यह मानता है कि सीखना सामाजिक संपर्क(social interaction), अवलोकन (observation) और सांस्कृतिक संदर्भ (culturalcontext) में होता है (जैसे अल्बर्ट बैंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत और वायगोत्सकीका सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत)।

 

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत

(Jean Piaget's Cognitive DevelopmentTheory)

स्विस मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे का सिद्धांत इस बात पर केंद्रितहै कि बच्चे दुनिया को कैसे समझते हैं और सीखते हैं। उनके अनुसार, बच्चे सक्रिय रूपसे "छोटे वैज्ञानिक" की तरह अपने ज्ञान का निर्माण करते हैं, और उनका मानसिकविकास चरणों की एक श्रृंखला में होता है।

सिद्धांत की मुख्य अवधारणाएँ:

  • स्कीमा (Schema): सूचना को व्यवस्थित करने और व्याख्या करने के लिए मस्तिष्क में बनी ज्ञान की बुनियादी इकाइयाँ या मानसिक संरचनाएँ।
  • अनुकूलन (Adaptation): यह एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चे वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते हैं। इसमें दो उप-प्रक्रियाएँ शामिल हैं:
    • आत्मसातीकरण/समावेश (Assimilation): नए अनुभवों को मौजूदा स्कीमा में फिट करना।
    • समायोजन/समंजन (Accommodation): नए अनुभवों को फिट करने के लिए मौजूदा स्कीमा को बदलना या नई स्कीमा बनाना।

संज्ञानात्मक विकास के चार चरण:

क्रम (No.)

अवस्था का नाम (Stage Name)

अनुमानित आयु (Approx. Age)

प्रमुख विशेषताएँ (Key Characteristics)

1.

संवेदी-गामक अवस्था (Sensorimotor Stage)

जन्म से 2 वर्ष

* इंद्रियों और क्रियाओं के माध्यम से सीखते हैं। * वस्तु स्थायित्व (Object Permanence) का विकास (जब वस्तु दिखाई न दे तब भी उसका अस्तित्व समझना)।

2.

पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (Pre-operational Stage)

2 से 7 वर्ष

* प्रतीकात्मक चिंतन (Symbolic Thought) और भाषा का विकास। * अहंकेन्द्रितवाद (Egocentrism): दूसरों के दृष्टिकोण को समझने में कठिनाई। * जीववाद (Animism): निर्जीव वस्तुओं को सजीव समझना।

3.

मूर्त-संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational Stage)

7 से 11 वर्ष

* तार्किक चिंतन प्रारंभ होता है, लेकिन केवल मूर्त (Concrete) वस्तुओं या घटनाओं के लिए। * संरक्षण (Conservation) की समझ (आकार बदलने पर भी मात्रा समान रहती है)। * पलटावी गुण (Reversibility) और वर्गीकरण (Classification) की क्षमता।

4.

औपचारिक-संक्रियात्मक अवस्था (Formal Operational Stage)

11 वर्ष और उससे अधिक

* अमूर्त चिंतन (Abstract Thought) की क्षमता का विकास। * परिकल्पनात्मक-निगमनात्मक तर्क (Hypothetical-Deductive Reasoning) विकसित करना। * भविष्य और वैचारिक समस्याओं के बारे में सोचना।

 

मैसलो का आवश्यकता पदानुक्रम सिद्धांत

(Maslow's Hierarchy of Needs Theory)

अमेरिकी मनोवैज्ञानिक अब्राहम मैसलो द्वारा 1943 मेंप्रस्तुत किया गया एक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है। यह सिद्धांत मानव अभिप्रेरणा(motivation) की व्याख्या करता है, जिसमें बताया गया है कि मनुष्य की ज़रूरतें एक पदानुक्रम(hierarchy) में व्यवस्थित होती हैं।

इस सिद्धांत के अनुसार, एक व्यक्ति अपनी निचली या मूलभूतआवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रेरित होता है, और एक बार जब वे संतुष्ट हो जातीहैं, तो वह पदानुक्रम में अगली उच्च-स्तरीय आवश्यकता की ओर बढ़ता है। इस पदानुक्रमको प्रायः एक पिरामिड के रूप में दर्शाया जाता है, जिसके आधार पर सबसे बुनियादीआवश्यकताएँ और शीर्ष पर सबसे जटिल आवश्यकताएँ होती हैं।

मैसलो ने मानव की आवश्यकताओं को पाँच मुख्य स्तरों में वर्गीकृतकिया, जो निम्नतम से उच्चतम क्रम में इस प्रकार हैं:

क्रम (No.)

आवश्यकता का स्तर (Level of Need)

विवरण (Description)

1.

शारीरिक/दैहिक आवश्यकताएँ (Physiological Needs)

ये मानव जीवन के अस्तित्व के लिए सबसे बुनियादी और आवश्यक आवश्यकताएँ हैं। जैसे: भोजन, पानी, हवा, नींद, आश्रय, वस्त्र और यौन-क्रिया।

2.

सुरक्षा आवश्यकताएँ (Safety Needs)

एक बार जब शारीरिक आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं, तो व्यक्ति सुरक्षा और स्थिरता की आवश्यकता महसूस करता है। जैसे: व्यक्तिगत सुरक्षा, वित्तीय सुरक्षा (नौकरी की सुरक्षा), स्वास्थ्य, और भय से मुक्ति।

3.

सामाजिक/संबद्धता आवश्यकताएँ (Love and Belonging Needs)

इन आवश्यकताओं में भावनात्मक आवश्यकताएँ शामिल हैं। व्यक्ति समाज में किसी का होना, प्यार पाना और एक समूह का हिस्सा महसूस करना चाहता है। जैसे: दोस्ती, परिवार, आत्मीयता, स्नेह और सामाजिक स्वीकृति।

4.

सम्मान आवश्यकताएँ (Esteem Needs)

सामाजिक रूप से स्वीकार किए जाने के बाद, व्यक्ति सम्मान और आत्म-मूल्य की आवश्यकता महसूस करता है। यह दो प्रकार का होता है: आंतरिक सम्मान (आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास, उपलब्धि) और बाह्य सम्मान (मान्यता, स्थिति, प्रतिष्ठा)।

5.

आत्म-सिद्धि आवश्यकताएँ (Self-Actualization Needs)

यह पदानुक्रम का उच्चतम स्तर है। इसका अर्थ है व्यक्ति की अपनी पूरी क्षमता को साकार करने की इच्छा, स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बनाना, व्यक्तिगत विकास और लक्ष्य की प्राप्ति। यह आवश्यकताएँ व्यक्ति को अपनी अद्वितीय प्रतिभा और क्षमता का उपयोग करने के लिए प्रेरित करती हैं।


 

 


 

UNIT-III

प्रसवपूर्व चरण और आनुवंशिक कारक

(Prenatal Stage and Genetic Factors)

प्रसवपूर्व चरण वह अवधि है जो गर्भाधान (Conception) से शुरूहोकर जन्म तक चलती है। यह तीव्र विकास का चरण होता है, और इस दौरान आनुवंशिक (आंतरिक)और पर्यावरणीय (बाहरी) दोनों कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रसवपूर्व विकास के चरण:

1.   जननिक/बीजांकुर अवस्था (Germinal Stage): (गर्भाधानसे लगभग 2 सप्ताह तक)

o    प्रारंभ:शुक्राणु द्वारा अंडे का निषेचन होने पर युग्मनज (Zygote) बनता है।

o    आनुवंशिककारक: इसी क्षण बच्चे का आनुवंशिक ढाँचा (Genetic Makeup) और लिंग निर्धारित हो जाताहै। माता-पिता के 23-23 गुणसूत्र (Chromosomes) मिलकर 46 गुणसूत्रों का एक अद्वितीयसंयोजन बनाते हैं।

o    विकास:युग्मनज तेजी से विभाजित होता है, ब्लास्टोसिस्ट (Blastocyst) बनाता है, और गर्भाशयकी दीवार में प्रत्यारोपित (Implantation) हो जाता है।

2.   भ्रूणीय अवस्था (Embryonic Stage): (लगभग 3 सप्ताहसे 8 सप्ताह तक)

o    विकास:कोशिकाएँ तीन परतों में विभाजित होकर शरीर के मूल अंगों और प्रणालियों (तंत्रिका तंत्र,हृदय, पाचन तंत्र) का निर्माण करती हैं। यह अंगजनन (Organogenesis) की अवधि होती है।भ्रूण एक छोटा मानव जैसा रूप लेने लगता है।

o    संवेदनशीलता:यह चरण पर्यावरणीय खतरों (जैसे टेराटोजन- Teratogens) के प्रति सबसे अधिक संवेदनशीलहोता है, क्योंकि अंगों का निर्माण हो रहा होता है।

3.   गर्भस्थ शिशु अवस्था (Fetal Stage): (लगभग 9सप्ताह से जन्म तक)

o    विकास:इस चरण में वृद्धि (Growth) और परिपक्वता (Maturation) प्रमुख होती है। अंग प्रणालियाँकार्य करना शुरू कर देती हैं, और मस्तिष्क तेजी से विकसित होता है। बच्चा लंबाई औरवजन बढ़ाता है।

o    गतिविधि:गर्भस्थ शिशु की गतिविधियाँ (लात मारना, अंगूठा चूसना) महसूस की जा सकती हैं।

 

 

आनुवंशिक कारकों का प्रभाव:

  • विरासत (Heredity): बच्चे के शारीरिक और कुछ हद तक बौद्धिक और व्यक्तित्व गुण (जैसे आँख/बालों का रंग, ऊँचाई की सीमा, कुछ स्वभावगत प्रवृत्तियाँ) आनुवंशिक रूप से निर्धारित होते हैं।
  • आनुवंशिक असामान्यताएँ (Genetic Abnormalities): गुणसूत्रों या एकल जीन में त्रुटियों के कारण विकास संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं (जैसे डाउन सिंड्रोम)।
  • आनुवंशिकता-वातावरण परस्पर क्रिया (Gene-Environment Interplay): आनुवंशिक कारक बच्चे की क्षमता को निर्धारित करते हैं, लेकिन यह वातावरण है जो यह तय करता है कि वह क्षमता कितनी हद तक व्यक्त होगी। उदाहरण के लिए, एक बच्चे में संगीत की आनुवंशिक प्रवृत्ति हो सकती है, लेकिन सफल होने के लिए उसे संगीतमय वातावरण की आवश्यकता होगी।

 

2. शैशवावस्था और दुनिया में समायोजन (Infancy andAdjustment to Immediate World)

शैशवावस्था (Infancy) जन्म से शुरू होकर लगभग पहले दो वर्षोंतक की अवधि होती है। जन्म बच्चे के लिए एक नाटकीय परिवर्तन है, जहाँ उसे गर्भाशय केसुरक्षित और नियंत्रित वातावरण से निकलकर बाहरी दुनिया में तुरंत समायोजन करना पड़ताहै।

प्रमुख समायोजन:

समायोजन (Adjustment)

विवरण (Description)

श्वसन (Respiration)

जन्म के बाद सबसे महत्वपूर्ण समायोजन। फेफड़ों में तरल पदार्थ साफ़ होता है और बच्चा पहली बार स्वयं साँस लेना शुरू करता है। (पहली रोना/चीख इसमें मदद करती है)

परिसंचरण (Circulation)

रक्त संचार प्रणाली में बड़ा बदलाव आता है। जन्म से पहले माँ के प्लेसेंटा (Placenta) से जुड़े मार्ग बंद हो जाते हैं, और फेफड़ों के माध्यम से रक्त का प्रवाह शुरू हो जाता है।

तापमान नियमन (Temperature Regulation)

शिशु को अब माँ के शरीर के स्थिर तापमान के बजाय स्वयं अपने शरीर का तापमान बाहरी वातावरण में नियंत्रित करना होता है।

पोषण/उत्सर्जन (Nutrition/Excretion)

भोजन सीधे प्लेसेंटा से प्राप्त करने के बजाय, शिशु को अब चूसने, निगलने और पचाने की क्रियाएँ शुरू करनी पड़ती हैं।

 

शैशवावस्था की विशेषताएँ और विकास:

  • प्रतिवर्त (Reflexes): नवजात शिशु जन्मजात स्वचालित प्रतिक्रियाओं (Inborn Automatic Responses) के साथ पैदा होते हैं जो उन्हें जीवित रहने और पर्यावरण के साथ तालमेल बिठाने में मदद करती हैं।
    • उदाहरण: चूसने का प्रतिवर्त (Sucking Reflex), रूटिंग प्रतिवर्त (Rooting Reflex - स्तन या बोतल की तलाश), मोर्रो प्रतिवर्त (Moro Reflex - चौंकाने पर भुजाएँ फैलाना)।
  • शारीरिक विकास: शैशवावस्था में शारीरिक और मस्तिष्क का विकास सबसे तेज होता है।
  • संवेदी और प्रात्यक्षिक विकास (Sensory and Perceptual Development): नवजात शिशुओं में दृष्टि, श्रवण, स्पर्श आदि इंद्रियाँ मौजूद होती हैं, जो धीरे-धीरे विकसित होती हैं। वे आवाजों को सुनना, चेहरों को पहचानना और अपनी माँ की गंध को प्राथमिकता देना सीखते हैं।

 

सामाजिक-संवेगात्मक समायोजन:

    • जुड़ाव (Attachment): शिशु का प्राथमिक देखभालकर्ता (आमतौर पर माँ) के साथ एक मजबूत भावनात्मक बंधन विकसित करना सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक समायोजन है।
    • मूल संवेग (Basic Emotions): शिशु रोने, मुस्कुराने और कुछ समय बाद डर और क्रोध जैसे मूल संवेगों को व्यक्त करना और अनुभव करना सीखते हैं।
    • सामाजिक मुस्कान (Social Smile): लगभग 6 सप्ताह की उम्र में सामाजिक मुस्कान शुरू होती है, जो सामाजिक संपर्क की शुरुआत का प्रतीक है।

प्रारंभिक बचपन में विकास (Growth in EarlyChildhood)

प्रारंभिक बचपन में विकास शैशवावस्था की तुलना में धीमी लेकिनअधिक स्थिर गति से होता है, और यह बच्चों को स्कूल-पूर्व गतिविधियों के लिए तैयार करताहै।

(अ) शारीरिक और गत्यात्मक विकास (Physicaland Motor Development)

  • शारीरिक वृद्धि: बच्चों की ऊँचाई और वजन में लगातार वृद्धि होती है, लेकिन शैशवावस्था जितनी तेजी से नहीं। शरीर का अनुपात अधिक वयस्कों जैसा होने लगता है (सिर शरीर के अनुपात में छोटा दिखाई देता है)।
  • सकल गत्यात्मक कौशल (Gross Motor Skills): इन कौशलों में तेजी से सुधार होता है। बच्चे दौड़ना, कूदना, एक पैर पर खड़ा होना, सीढ़ियाँ चढ़ना और गेंद फेंकना/पकड़ना सीखते हैं।
  • सूक्ष्म गत्यात्मक कौशल (Fine Motor Skills): ये कौशल भी विकसित होते हैं। बच्चे चम्मच से खाना, अपनी शर्ट के बटन लगाना, ज़िप बंद करना, कागज़ काटना, सरल चित्र बनाना (जैसे वृत्त, वर्ग) और पेंसिल पकड़ना सीखते हैं।

(ब) संज्ञानात्मक विकास (CognitiveDevelopment)

  • भाषा विकास: भाषा कौशल में विस्फोट होता है। बच्चे हज़ारों शब्द सीखते हैं, जटिल वाक्य बनाते हैं और अपनी बात कहने के लिए भाषा का उपयोग करते हैं।
  • प्रतीकात्मक चिंतन (Symbolic Thought): बच्चे वस्तुओं और विचारों को प्रतीकों (Symbols) के रूप में उपयोग करना सीखते हैं। यह कल्पनाशील खेल (Pretend Play) के लिए महत्वपूर्ण है।
  • तर्क: वे वस्तुनिष्ठ तर्क की बजाय अंतर्ज्ञान (Intuition) पर अधिक निर्भर करते हैं (पियाजे की पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था)।
  • सीमितताएँ: इस चरण में चिंतन की कुछ सीमाएँ होती हैं, जैसे अहंकेन्द्रितवाद (Egocentrism) (दूसरों के दृष्टिकोण से दुनिया को देखने में कठिनाई) और संरक्षण की कमी (Lack of Conservation) (यह समझने में कठिनाई कि वस्तु की मात्रा उसके रूप या आकार बदलने पर भी समान रहती है)।

(स) सामाजिक-संवेगात्मक विकास(Socio-Emotional Development)

  • आत्म-धारणा (Self-Concept): बच्चे अपनी पहचान (Identity) और अपनी क्षमताओं का विकास करना शुरू करते हैं।
  • संवेगों का प्रबंधन: वे अपने संवेगों को पहचानने और कुछ हद तक नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं।

 

खेल की भूमिका (Role of Play)

प्रारंभिक बचपन में खेल सीखने, विकास और सामाजिकरण(Socialization) का केंद्रीय तरीका है। इसे बच्चों का "कार्य" (Work) मानाजाता है।

विकास का क्षेत्र (Developmental Area)

खेल के माध्यम से लाभ (Benefits through Play)

शारीरिक

दौड़ना और कूदना सकल गत्यात्मक कौशल में सुधार करता है; ब्लॉक या पज़ल बनाना सूक्ष्म गत्यात्मक कौशल को बेहतर बनाता है।

संज्ञानात्मक

कल्पनाशील खेल प्रतीकात्मक चिंतन, रचनात्मकता और समस्या-समाधान कौशल को बढ़ाता है। खिलौनों को छाँटना वर्गीकरण (Classification) सीखने में मदद करता है।

सामाजिक

साथियों के साथ खेलने से सहयोग करना, साझा करना, अपनी बारी का इंतज़ार करना और सामाजिक नियम (Social Rules) सीखना होता है।

संवेगात्मक

खेल बच्चों को अपनी भावनाओं (जैसे डर, क्रोध) को सुरक्षित और रचनात्मक तरीके से व्यक्त करने और नियंत्रित करने की अनुमति देता है। यह आत्म-सम्मान (Self-esteem) भी बनाता है।

 

खेल के प्रकार (Types of Play)(मिल्ड्रेडपार्टन के अनुसार):

1.   अकेले खेलना (Solitary Play): बच्चाअकेले खेलता है और दूसरों के खेल पर ध्यान नहीं देता।

2.   दर्शक व्यवहार (Onlooker Behavior): बच्चादूसरों को खेलते हुए देखता है लेकिन स्वयं भाग नहीं लेता।

3.   समानांतर खेल (Parallel Play): बच्चेएक-दूसरे के पास-पास खेलते हैं, एक जैसे खिलौनों का उपयोग करते हैं, लेकिन कोई वास्तविकबातचीत या आदान-प्रदान नहीं होता।

4.   सहयोगी खेल (Associative Play): बच्चेएक-दूसरे के साथ बातचीत करते हैं और खिलौने साझा करते हैं, लेकिन उनका कोई सामान्यलक्ष्य नहीं होता।

5.   सहकारी खेल (Cooperative Play): बच्चेएक सामान्य लक्ष्य के लिए मिलकर काम करते हैं, जैसे एक साथ एक किला बनाना या एक नाटकखेलना। यह सामाजिक कौशल का उच्चतम स्तर है।

 

 

 

परिवार के साथ संबंध

(Relationship with Family)

परिवार प्रारंभिक बचपन में बच्चे के विकास को प्रभावित करनेवाली प्राथमिक और सबसे महत्वपूर्ण शक्ति है।

(अ) संबंध की गुणवत्ता (Quality ofRelationship)

  • सुरक्षा और जुड़ाव (Security and Attachment): माता-पिता के साथ सुरक्षित जुड़ाव बच्चे को दुनिया का पता लगाने के लिए एक सुरक्षित आधार प्रदान करता है। यह बच्चे को आत्मविश्वास (Confidence) और सुरक्षा की भावना देता है।
  • उत्तरदायी देखभाल (Responsive Caregiving): जब माता-पिता बच्चे की ज़रूरतों और भावनाओं पर तुरंत और प्यार से प्रतिक्रिया करते हैं, तो बच्चे का मस्तिष्क स्वस्थ रूप से विकसित होता है और वे तनाव का बेहतर ढंग से प्रबंधन करना सीखते हैं।

(ब) समाजीकरण की भूमिका (Role inSocialization)

परिवार समाजीकरण का पहला एजेंट है, जहाँ बच्चा सीखता है:

  • मूल्य और नैतिकता (Values and Morality): सही और गलत का बोध, ईमानदारी, और सम्मान जैसे पारिवारिक मूल्यों को बच्चा अवलोकन और निर्देश के माध्यम से आत्मसात करता है।
  • भावनात्मक अभिव्यक्ति (Emotional Expression): बच्चा देखता है कि परिवार के सदस्य कैसे अपनी भावनाओं (खुशी, क्रोध, दुःख) को व्यक्त और नियंत्रित करते हैं, और वह इसका अनुकरण करता है।
  • सामाजिक कौशल: परिवार के भीतर बातचीत, साझा करने और संघर्षों को हल करने के तरीके सीखने से बच्चे को परिवार के बाहर (स्कूल, समुदाय) सामाजिक संबंधों के लिए तैयार किया जाता है।

(स) माता-पिता की भूमिका (Parenting Role)

माता-पिता बच्चे के विकास को बढ़ाने के लिए दो मुख्य तरीकेप्रदान करते हैं:

1.   रोल मॉडल (Role Model): माता-पिताका व्यवहार और उनके आपसी संबंध बच्चे के लिए एक शक्तिशाली मॉडल होते हैं।

2.   प्रेरणा और प्रोत्साहन (Stimulationand Encouragement): बच्चों को पढ़ने, बात करने, और उनके साथ खेलनेके लिए समय देने से संज्ञानात्मक और भाषाई विकास को बढ़ावा मिलता है।

संक्षेप में, प्रारंभिक बचपन में, विकास की गति अधिक स्थिरहो जाती है, खेल सीखने का प्रमुख साधन बन जाता है, और परिवार के साथ संबंध बच्चे कीभावनात्मक सुरक्षा, सामाजिक कौशल और मूल्यों की नींव स्थापित करता है।

 

भारतीय युवाओं के जीवन-शैली से जुड़े खतरे (Hazards) और उनकेगंभीर प्रभाव (Effects) एक चिंताजनक विषय बन चुके हैं। शहरीकरण, वैश्वीकरण और तकनीकीप्रगति ने जीवन को आरामदायक बना दिया है, लेकिन साथ ही कई स्वास्थ्य और मानसिक जोखिमभी बढ़ा दिए हैं।

 

INDAIN YOUTH AND HAZARDS LIFE -STYLEEFFECTS

भारतीय युवाओं की जीवन-शैली के प्रमुख खतरेऔर उनके प्रभाव

 

I. शारीरिक स्वास्थ्य पर खतरे (Hazards onPhysical Health)

आधुनिक जीवनशैली ने युवा भारतीयों में पुरानी बीमारियों(Chronic Diseases) के जोखिम को बढ़ा दिया है, जो पहले बुढ़ापे की बीमारियाँ मानी जातीथीं।

जीवन-शैली के खतरे (Hazards)

मुख्य प्रभाव (Key Effects)

1. गतिहीन जीवन-शैली (Sedentary Lifestyle)

मोटापा (Obesity) और अधिक वज़न (Overweight): स्क्रीन टाइम (मोबाइल, लैपटॉप, OTT) में वृद्धि और शारीरिक गतिविधि की कमी के कारण मोटापा तेजी से बढ़ रहा है।

2. ख़राब आहार (Poor Diet)

मेटाबोलिक सिंड्रोम (Metabolic Syndrome): जंक फ़ूड, प्रोसेस्ड फूड, और उच्च चीनी (High Sugar) व वसा (Fat) वाले आहार का अत्यधिक सेवन। खाने के समय में अनियमितता (जैसे देर रात भोजन)।

3. नींद की कमी (Sleep Deprivation)

हृदय रोग (cardiovascular diseases): उच्च रक्तचाप (Hypertension) और कम उम्र में ही दिल के दौरे (Heart Attacks) का बढ़ता खतरा। मधुमेह (Type-2 Diabetes): विशेष रूप से युवाओं में टाइप-2 मधुमेह की शुरुआत।

4. नशा और व्यसन (Substance Abuse)

हार्मोनल विकार: लड़कियों में PCOS/PCOD जैसे हार्मोनल विकारों की बढ़ती घटनाएँ।

5. तंबाकू और शराब का सेवन

फैटी लिवर और किडनी की समस्याएँ।

 

 

II. मानसिक स्वास्थ्य पर खतरे (Hazards onMental Health)

प्रतिस्पर्धात्मक माहौल, सामाजिक दबाव और डिजिटल कनेक्टिविटीके कारण मानसिक स्वास्थ्य एक बड़ा संकट बन गया है।

जीवन-शैली के खतरे (Hazards)

मुख्य प्रभाव (Key Effects)

1. अत्यधिक तनाव और प्रतिस्पर्धा (High Stress & Competition)

अवसाद (Depression) और चिंता (Anxiety): करियर, शिक्षा, और सामाजिक अपेक्षाओं को पूरा करने का भारी दबाव।

2. डिजिटल और सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग

नींद संबंधी विकार: देर रात तक स्क्रीन देखने से नींद के चक्र (Circadian Rhythm) में बाधा। आत्महत्या (Suicide): युवाओं में मृत्यु का एक प्रमुख कारण।

3. अकेलेपन की भावना (Feeling of Isolation)

ख़राब आत्म-सम्मान (Low Self-Esteem): सोशल मीडिया पर दूसरों की "आदर्श" जीवन-शैली देखकर असुरक्षा और ईर्ष्या की भावना।

4. अपर्याप्त सामाजिक समर्थन (Inadequate Social Support)

व्यसन (Addiction): ऑनलाइन गेमिंग, सोशल मीडिया और मादक पदार्थों का व्यसन।

 

 

III. सामाजिक और व्यवहारिक खतरे (Social& Behavioral Hazards)

जीवन-शैली के खतरे (Hazards)

मुख्य प्रभाव (Key Effects)

1. सड़क दुर्घटनाएँ (Road Accidents)

असुरक्षित ड्राइविंग व्यवहार: लापरवाही, यातायात नियमों की अनदेखी, बिना हेलमेट या सीट बेल्ट के ड्राइविंग, और नशे में ड्राइविंग के कारण युवाओं में चोट और मृत्यु दर अधिक है।

2. बेरोज़गारी और कौशल-अंतर (Unemployment & Skill Gap)

निराशा और सामाजिक अशांति: उच्च शिक्षा के बावजूद उपयुक्त रोज़गार न मिलना, जिससे निराशा, हताशा और कभी-कभी सामाजिक विरोध/अशांति पैदा होती है।

3. सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन

पारिवारिक संघर्ष: पारंपरिक और आधुनिक मूल्यों के टकराव के कारण परिवार के भीतर संघर्ष।

 

सारांश: यह 'टाइम बॉम्ब' क्यों है?

युवाओं में ये जीवन-शैली के खतरे एक "टाइम बॉम्ब"की तरह हैं क्योंकि:

1.   कम उम्र में शुरुआत: जोबीमारियाँ (जैसे हृदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप) पहले 50 या 60 वर्ष की आयु में दिखतीथीं, वे अब 20 और 30 के दशक के युवाओं में दिखाई दे रही हैं।

2.   जेनेटिक संवेदनशीलता: भारतीयआबादी में आनुवंशिक रूप से (Genetically) हृदय रोगों और मधुमेह के प्रति अधिक संवेदनशीलताहोती है, और ख़राब जीवन-शैली इन जीनों को 'सक्रिय' (Activate) कर देती है।

3.   आर्थिक बोझ: कमउम्र में बीमारियों के आने से उत्पादक वर्षों (Productive Years) के दौरान व्यक्तिगतऔर राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल का खर्च बहुत अधिक बढ़ जाता है।

इन खतरों को रोकने के लिए संतुलित आहार, नियमित व्यायाम,पर्याप्त नींद, तनाव प्रबंधन और समय पर स्वास्थ्य जांच को प्राथमिकता देना अत्यंत आवश्यकहै।

 


 

UNIT-IV

वयस्कता: विकास, व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन,स्वास्थ्य, कामुकता

(Adulthood: Growth, Personal and SocialAdjustment, Health, Sexuality)

वयस्कता मानव जीवन काल का सबसे लंबा चरण है, जिसे आम तौरपर प्रारंभिक (Early), मध्य (Middle) और उत्तर (Late) वयस्कता में विभाजित किया जाताहै। यह महत्वपूर्ण शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक विकासों द्वारा चिह्नित है क्योंकिव्यक्ति पूर्ण वयस्क जिम्मेदारियों को अपनाते हैं।

 

1. वृद्धि और विकास (Growth and Development)

वयस्कता मुख्य रूप से नाटकीय शारीरिक वृद्धि (जो प्रारंभिकवयस्कता में चरम पर होती है) के बजाय संज्ञानात्मक (Cognitive), भावनात्मक और मनोवैज्ञानिकपरिपक्वता पर केंद्रित होती है।

चरण

अनुमानित आयु सीमा

विकास का मुख्य केंद्र

उभरती/प्रारंभिक वयस्कता

20 से 40 की उम्र तक

शारीरिक चरमोत्कर्ष (Peak Physicality): शारीरिक शक्ति, इंद्रियाँ और प्रजनन क्षमता आमतौर पर अपने चरम पर होती हैं। संज्ञानात्मक परिपक्वता: उत्तर-औपचारिक सोच (अधिक लचीली, तार्किक और व्यावहारिक सोच) का विकास।

मध्य वयस्कता

40 से 60 के दशक के मध्य तक

शारीरिक गिरावट की शुरुआत: मांसपेशियों, हड्डियों के घनत्व और चयापचय दर में क्रमिक कमी शुरू होती है। संज्ञानात्मक स्थिरता: व्यावहारिक समस्या-समाधान कौशल अक्सर मजबूत रहते हैं या उनमें सुधार होता है।

उत्तर वयस्कता

60 के दशक के मध्य और उससे अधिक

गिरावट में तेज़ी: ध्यान स्वास्थ्य प्रबंधन, गतिशीलता और संज्ञानात्मक स्वास्थ्य को बनाए रखने पर केंद्रित होता है।

 

2. व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन (Personal and SocialAdjustment)

वयस्कता प्रमुख जीवन परिवर्तनों को सफलतापूर्वक पार करनेऔर एक स्थिर आत्म-पहचान और संबंध स्थापित करने द्वारा चिह्नित है। प्रमुख मनोसामाजिकचुनौतियाँ (एरिक एरिक्सन के सिद्धांत पर आधारित) इस प्रकार हैं:

मनोसामाजिक चुनौती

चरण

मुख्य कार्य

आत्मीयता बनाम अलगाव

प्रारंभिक वयस्कता

माता-पिता से स्वतंत्रता प्राप्त करते हुए गहन रूप से प्रतिबद्ध, संतोषजनक संबंध (विवाह, साझेदारी) बनाना। कार्य और प्रेम में एक व्यक्तिगत पहचान स्थापित करना।

जननात्मकता बनाम ठहराव

मध्य वयस्कता

समाज में योगदान करना और अगली पीढ़ी का मार्गदर्शन करना (कार्य, मेंटरिंग, बच्चों का पालन-पोषण या सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से)। विफलता से अनुत्पादक होने की भावना पैदा होती है।

अखंडता बनाम निराशा

उत्तर वयस्कता

अपने जीवन पर संतोष और स्वीकृति (अखंडता) की भावना के साथ विचार करना, न कि पछतावे या कड़वाहट (निराशा) के साथ।

 

प्रमुख समायोजन क्षेत्र:

  • करियर और कार्य: एक करियर पथ स्थापित करना, व्यावसायिक लक्ष्यों को प्राप्त करना और कामकाज और जीवन में संतुलन बनाना।
  • परिवार का निर्माण: एक साथी का चयन करना, विवाह करना, बच्चों का पालन-पोषण करना, और मध्य आयु में "खाली घोंसले" (Empty Nest) की स्थिति में समायोजित होना।
  • स्वायत्तता (Autonomy): वित्तीय और आवासीय स्वतंत्रता स्थापित करना।

 

3. स्वास्थ्य (Health)

वयस्कता में स्वास्थ्य अपने चरम पर होने से बदलकर रखरखावऔर निवारक देखभाल का मुख्य केंद्र बन जाता है।

  • प्रारंभिक वयस्कता: आम तौर पर सबसे स्वस्थ समय। स्वास्थ्य जोखिम अक्सर व्यवहार संबंधी होते हैं (जैसे, नशीले पदार्थों का सेवन, जोखिम भरा यौन व्यवहार, अनपेक्षित चोटें, और हिंसा)।
  • मध्य वयस्कता: जीवन-शैली से जुड़ी बीमारियों (दीर्घकालिक स्थितियाँ) की शुरुआत बढ़ जाती है।
    • प्रमुख स्वास्थ्य चिंताएँ: हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप (Hypertension) और कुछ प्रकार के कैंसर।
    • प्रबंधन: आहार, नियमित व्यायाम, तनाव प्रबंधन और नियमित चिकित्सा जाँच के माध्यम से रोकथाम महत्वपूर्ण हो जाती है।
  • जैविक परिवर्तन:
    • महिलाएँ: रजोनिवृत्ति (Menopause) (आमतौर पर 40 के दशक के अंत/50 के दशक की शुरुआत में मासिक धर्म और प्रजनन क्षमता का अंत) में हार्मोनल परिवर्तन और विभिन्न शारीरिक लक्षण शामिल होते हैं।
    • पुरुष: धीमी, अधिक क्रमिक हार्मोनल गिरावट (एण्ड्रोपॉज़) का अनुभव करते हैं, जिसमें अक्सर टेस्टोस्टेरोन में कमी और शारीरिक बदलाव शामिल होते हैं।

 

4. कामुकता (Sexuality)

कामुक विकास और अभिव्यक्ति वयस्कता के दौरान विकसित होतेरहते हैं, जो जीव विज्ञान, संबंध और संस्कृति से प्रभावित होते हैं।

  • प्रारंभिक वयस्कता: यौन गतिविधि और प्रतिक्रिया आम तौर पर उच्च होती है। यह यौन पहचान की खोज और समेकन और अंतरंग यौन संबंध बनाने का समय होता है। गर्भनिरोधक, यौन संचारित संक्रमण (STIs), और परिवार शुरू करने के मुद्दे केंद्रीय होते हैं।
  • मध्य और उत्तर वयस्कता: यौन गतिविधि धीमी हो सकती है, लेकिन यह आवश्यक रूप से समाप्त नहीं होती है।
    • जैविक कारक: हार्मोनल परिवर्तन (रजोनिवृत्ति, एण्ड्रोपॉज़) इच्छा और प्रतिक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।
    • संबंध कारक: संतोषजनक यौन जीवन बनाए रखने में केवल शारीरिक कारकों के बजाय संबंधों की गुणवत्ता, आत्मीयता और संचार अक्सर अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
    • प्रमुख मुद्दे: उम्र से संबंधित स्वास्थ्य स्थितियों (जैसे हृदय रोग या मधुमेह) से निपटना जो यौन क्रिया को प्रभावित कर सकती हैं, और वृद्धावस्था में कामुकता की सामाजिक धारणाओं को समझना।

 

व्यावसायिक और मानसिक समायोजन

(Vocational and Mental Adjustment)

वयस्कता में व्यावसायिक (Vocational) और मानसिक(Mental) समायोजन एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। करियर का चुनाव और उसमेंसफलता व्यक्ति के आत्म-सम्मान और समग्र मानसिक स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करती है,और इसके विपरीत, अच्छा मानसिक स्वास्थ्य कार्यस्थल पर बेहतर प्रदर्शन और संतोष का आधारबनता है।

 

1. व्यावसायिक समायोजन (VocationalAdjustment)

व्यावसायिक समायोजन का अर्थ है किसी व्यक्ति का अपने चुनेहुए व्यवसाय या नौकरी के साथ सफलतापूर्वक तालमेल बिठाना, जिसमें संतुष्टि, स्थिरताऔर प्रगति शामिल है।

  • करियर का चुनाव और स्थिरता: प्रारंभिक वयस्कता में, प्रमुख कार्य एक उपयुक्त व्यवसाय का चयन करना होता है। इसमें व्यक्तिगत रुचियाँ (Interests), मूल्य (Values), और योग्यता (Abilities) शामिल होती हैं। जो वयस्क अपनी पसंद और कौशल के अनुरूप काम चुनते हैं, उनके नौकरी में स्थिर रहने और संतुष्ट रहने की संभावना अधिक होती है।
  • कार्यस्थल पर अनुकूलन: नौकरी मिलने के बाद, समायोजन में निम्नलिखित शामिल होते हैं:
    • प्राधिकार के साथ समायोजन: वरिष्ठों और प्रबंधकों के साथ संबंधों को समझना और उनके प्रति अनुकूलन करना।
    • भूमिका पूर्ति: यह महसूस करना कि नौकरी उनकी क्षमताओं और प्रशिक्षण का उपयोग कर रही है, और यह उन्हें उनकी वांछित भूमिका निभाने की अनुमति देती है।
    • वेतन और पदोन्नति: वेतन वृद्धि या उनकी कमी के साथ समायोजन करना।
    • लिंग आधारित पूर्वाग्रह (Gender Biases): महिलाओं को अक्सर करियर की प्रगति और वेतन में असमानता जैसे पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता है, जिसके लिए अलग समायोजन की आवश्यकता होती है।
  • मध्य वयस्कता में समायोजन:
    • इस चरण में, व्यक्ति अक्सर उपलब्धियों (Achievements) और संतुष्टि (Satisfaction) का आकलन करते हैं।
    • कुछ लोग आय, प्रतिष्ठा और स्वायत्तता के साथ सफलता का आनंद लेते हैं। जबकि, जिन लोगों को लगता है कि वे अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाए हैं, वे असंतोष या "मिडलाइफ क्राइसिस" का अनुभव कर सकते हैं।
    • सेवानिवृत्ति के लिए तैयारी: व्यावसायिक समायोजन में नौकरी से सेवानिवृत्ति (Retirement) और उसके बाद की जीवनशैली और आय में कमी के लिए भावनात्मक और वित्तीय तैयारी करना भी शामिल है।

 

2. मानसिक समायोजन (Mental Adjustment)

मानसिक समायोजन का तात्पर्य व्यक्ति की अपने भौतिक औरसामाजिक वातावरण की मांगों और तनावों के प्रति सफलतापूर्वक प्रतिक्रिया करने कीक्षमता से है, जिससे एक संतुलित और सुखी जीवन प्राप्त होता है।

  • मानसिक स्वास्थ्य का महत्व: एक मानसिक रूप से समायोजित व्यक्ति में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं:
    • स्वस्थ आत्म-अवधारणा (Self-Concept): वे स्वयं को मूल्यवान मानते हैं और यथार्थवादी आकांक्षाएँ रखते हैं।
    • संवेगात्मक स्थिरता (Emotional Stability): वे अपनी भावनाओं को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने और तनाव की स्थितियों को शांत दिमाग से संभालने में सक्षम होते हैं।
    • समस्या-समाधान कौशल: वे समस्याओं और संघर्षों को दूर करने के लिए रचनात्मक और उन्नत रक्षात्मक तंत्र (जैसे उदात्तीकरण/Sublimation) का उपयोग करते हैं।
    • सामाजिक कौशल: वे दूसरों के विचारों और समस्याओं को समझते हैं, जिससे उन्हें सामाजिक रूप से बेहतर ढंग से तालमेल बिठाने में मदद मिलती है।
  • व्यावसायिक और मानसिक स्वास्थ्य का संबंध:
    • सकारात्मक प्रभाव: करियर में सफलता, अच्छी आय और नौकरी से संतुष्टि व्यक्ति के आत्म-सम्मान को बढ़ाती है और तनाव, चिंता और अवसाद की भावनाओं को कम करके मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करती है।
    • नकारात्मक प्रभाव: नौकरी छूटना, कार्यस्थल पर भेदभाव, या पेशेवर विफलता की भावना से मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और व्यक्ति कुसमायोजन (Maladjustment), चिंता (Anxiety), या समायोजन विकार (Adjustment Disorder) का शिकार हो सकता है। यह विशेष रूप से तब होता है जब तनावपूर्ण घटनाएँ (जैसे नौकरी छूटना) अपेक्षा से अधिक तीव्र भावनात्मक प्रतिक्रिया उत्पन्न करती हैं।
  • समायोजन की प्रक्रिया: समायोजन एक निरंतर चलने वाली, संशोधन योग्य (Correctable) और उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति जीवन भर संतुलन (Equilibrium) बनाए रखने के लिए अपने व्यवहार में परिवर्तन करता है।

निष्कर्ष: व्यावसायिकऔर मानसिक समायोजन एक अन्योन्याश्रित प्रक्रिया है। एक व्यक्ति की कार्य संतुष्टिउसके समग्र मानसिक कल्याण का एक महत्वपूर्ण निर्धारक होती है, और मजबूत मानसिक स्वास्थ्यउसे करियर की चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक लचीलापन (Resilience) प्रदान करताहै।

 

वृद्धावस्था (Aging)

विशेषताएँ, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य केलिए समायोजन और समस्याएँ

वृद्धावस्था जीवन चक्र की अंतिम अवस्था है, जो प्रारंभिकवयस्कता से ही शुरू होने वाली एक सतत, क्रमिक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसमें शारीरिक,मानसिक और सामाजिक कार्यों में गिरावट आती है।

 

1. वृद्धावस्था की मुख्य विशेषताएँ(Characteristics of Aging)

वृद्धावस्था में कई आयामों में परिवर्तन दिखाई देते हैं,जिन्हें सामान्य (Normal) माना जाता है:

(A) शारीरिक विशेषताएँ (PhysicalCharacteristics)

1.   शारीरिक दुर्बलता (Physical Frailty): शरीरकी कार्यक्षमता (Homeostatic Reserves) में कमी आना।

2.   संवेदी अंगों की गिरावट (Decline inSensory Organs):

o    दृष्टि: पढ़नेमें कठिनाई (प्रेसबायोपिया), कम रोशनी में देखने में समस्या।

o    श्रवणशक्ति: सुनने की क्षमता में धीरे-धीरे कमी आना (प्रेस्बायकुसिस)।

3.   हड्डियों और जोड़ों में परिवर्तन (Boneand Joint Changes):

o    अस्थिघनत्व में कमी (Bone Density Loss): ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ना।

o    लचीलेपनमें कमी (Decreased Flexibility): जोड़ों में तरल पदार्थ कमहोने से अकड़न।

4.   पाचन और हृदय प्रणाली (Digestive andCardiovascular System):

o    पाचनतंत्र धीमा हो जाना (कब्ज का खतरा)।

o    रक्तवाहिकाओं का मोटा होना, जिससे हृदय को अधिक काम करना पड़ता है।

5.   त्वचा में परिवर्तन (Skin Changes): कोलेजनकी कमी के कारण त्वचा की लोच (Elasticity) कम होना और झुर्रियां पड़ना।

(B) मानसिक/संज्ञानात्मक विशेषताएँ(Mental/Cognitive Characteristics)

1.   स्मरण शक्ति में परिवर्तन (MemoryChanges):

o    कमजोरअल्पकालिक स्मृति (Short-term Memory Loss): हाल की बातें भूलनेकी समस्या।

o    कमप्रतिक्रिया समय (Slower Reaction Time): जानकारी को संसाधित करने(Process) और प्रतिक्रिया देने में अधिक समय लगना।

2.   सीखने और तर्क क्षमता में कमी (ReducedLearning and Reasoning): नई चीजें सीखने की गति धीमी हो सकती है।

3.   कार्यकारी कार्यक्षमता में कमी(Decreased Executive Functioning): ध्यान की अवधि (AttentionSpan) और कार्यशील स्मृति (Working Memory) में कमी।

4.   सकारात्मक पहलू (Positive Aspects): कुछअध्ययन बताते हैं कि बुद्धि (Wisdom), परोपकारिता (Altruism) और सामाजिकसंघर्षों में तर्क क्षमता में सुधार हो सकता है।

 

2. वृद्धावस्था की प्रमुख समस्याएँ (MajorAging Problems)

समस्या का प्रकार (Type of Problem)

विवरण (Description)

स्वास्थ्य समस्याएँ (Health Problems)

अधिकांश वृद्धों में बहु-रुग्णता (Multimorbidity), यानी एक ही समय में कई पुरानी बीमारियाँ (जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, गठिया, हृदय रोग) होना आम है।

मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ (Mental Health Issues)

अवसाद (Depression) और चिंता विकार (Anxiety disorders) सबसे आम हैं। मनोभ्रंश (Dementia), हालांकि सामान्य बुढ़ापे का हिस्सा नहीं है, लेकिन वृद्धों में इसकी व्यापकता अधिक है।

आर्थिक असुरक्षा (Economic Insecurity)

सेवानिवृत्ति के बाद नियमित आय स्रोत की कमी, जिससे जीवन स्तर बनाए रखने में कठिनाई होती है और वे आश्रित हो जाते हैं।

सामाजिक अलगाव और अकेलापन (Social Isolation & Loneliness)

परिवार के विघटन (संयुक्त से एकल परिवार), बच्चों के दूर चले जाने, और जीवनसाथी या दोस्तों की मृत्यु (Bereavement) के कारण सामाजिक अलगाव बढ़ता है।

भूमिका परिवर्तन (Role Changes)

सेवानिवृत्ति के बाद उपयोगिता की भावना में कमी आना, या देखभालकर्ता से स्वयं देखभाल किया जाने वाला व्यक्ति बन जाना, जिससे आत्म-सम्मान (Self-Esteem) कम होता है।

दुर्व्यवहार (Elder Abuse)

शारीरिक, मौखिक, मनोवैज्ञानिक या वित्तीय दुर्व्यवहार और उपेक्षा का शिकार होना।

 

3. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए समायोजन(Adjustment for Physical and Mental Health)

सफल या स्वस्थ आयुवृद्धि (Successful Aging) के लिएसक्रिय प्रयास और समायोजन आवश्यक है:

(A) शारीरिक स्वास्थ्य के लिए समायोजन(Adjustment for Physical Health)

समायोजन (Adjustment Strategy)

लाभ (Benefit)

नियमित व्यायाम (Regular Exercise)

शरीर को सक्रिय, स्वतंत्र और मानसिक रूप से सकारात्मक बनाए रखने में मदद करता है। हड्डियों का घनत्व और लचीलापन बनाए रखता है।

स्वस्थ जीवनशैली (Healthy Lifestyle)

संतुलित और पौष्टिक आहार लेना, धूम्रपान और अत्यधिक शराब के सेवन से बचना।

निवारक स्वास्थ्य व्यवहार (Preventive Health)

फ्लू और निमोनिया जैसे रोगों के लिए समय पर टीकाकरण कराना और नियमित स्वास्थ्य जांच कराना।

कार्यक्षमता में बदलाव के लिए समायोजन

दृष्टि, श्रवण या गतिशीलता में आई कमी के लिए सहायक उपकरणों का उपयोग करना (जैसे श्रवण यंत्र, छड़ी)।

 

 

 

(B) मानसिक स्वास्थ्य के लिए समायोजन(Adjustment for Mental Health)

समायोजन (Adjustment Strategy)

लाभ (Benefit)

सक्रिय मानसिक जुड़ाव (Active Mental Engagement)

मस्तिष्क को सक्रिय रखने के लिए नई चीजें सीखना, पहेलियाँ हल करना, या सांस्कृतिक/सामाजिक रुचि वाले क्षेत्रों से जुड़े रहना।

सामाजिक संपर्क बनाए रखना (Maintaining Social Connection)

परिवार, दोस्तों के साथ नियमित सकारात्मक बातचीत करना और सामाजिक नेटवर्क में शामिल होना। यह अकेलापन और अवसाद को कम करता है।

उद्देश्य की भावना (Sense of Purpose)

सेवानिवृत्ति के बाद स्वयंसेवी कार्य, शौक या जुनून वाले कार्यों में संलग्न रहना।

ध्यान और पूर्ण नींद (Meditation and Sleep)

ध्यान और मनन तनाव को कम करने में सहायक है। पर्याप्त नींद मानसिक संतुलन के लिए आवश्यक है।

पेशेवर मदद लेना (Seeking Professional Help)

यदि अवसाद, चिंता, या मादक द्रव्यों के उपयोग जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ महसूस हों, तो चिकित्सक या परामर्शदाता से सहायता लेना।

 

निष्कर्ष: वृद्धावस्थाएक प्राकृतिक प्रक्रिया है। चुनौतियों के बावजूद, एक सकारात्मक दृष्टिकोण, सक्रियजीवनशैली और मजबूत सामाजिक समर्थन के माध्यम से, व्यक्ति इस चरण में भीउच्च गुणवत्ता वाला और संतुष्ट जीवन जी सकते हैं।

 

Relevance To Social Work Practice,Across the Stages of Development and Method of Assessment

सामाजिक कार्य अभ्यास (Social Work Practice) एक पेशेवर गतिविधिहै जिसका उद्देश्य व्यक्तियों, परिवारों, समूहों, संगठनों और समुदायों को उनकी समस्याओंके समाधान और उनकी भलाई को बढ़ाने में मदद करना है।

 

1. सामाजिक कार्य अभ्यास की प्रासंगिकता (Relevance toSocial Work Practice)

सामाजिक कार्य का मूल सिद्धांत "व्यक्ति-पर्यावरण में"(Person-in-Environment - PIE) है। यह दृष्टिकोण व्यक्ति की समस्याओं को केवल व्यक्तिगतदोष के बजाय, उसके जैविक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक वातावरणके साथ उसके जटिल अंतःक्रिया के रूप में देखता है।

प्रासंगिकता का क्षेत्र (Area of Relevance)

विवरण (Description)

समस्या की समग्र समझ (Holistic Understanding of the Problem)

मूल्यांकन (Assessment) सामाजिक कार्य प्रक्रिया का केंद्र है। यह केवल समस्या को जानने के बजाय, ग्राहक (Client) के संसाधनों, क्षमताओं (Strengths) और पर्यावरण को भी ध्यान में रखता है।

लक्ष्यों का निर्धारण और हस्तक्षेप (Goal Setting and Intervention)

ग्राहक की जरूरतों और समस्याओं के अनुरूप व्यक्तिगत (Tailored) और साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेप योजनाएँ बनाने के लिए मूल्यांकन महत्वपूर्ण है।

द्विमुखी दृष्टिकोण (Dual Focus)

एक ओर, व्यक्ति को संस्थागत समाज के साथ बेहतर ढंग से समायोजित करने में मदद करना, और दूसरी ओर, सामाजिक अन्याय और प्रणालीगत बाधाओं को दूर करने के लिए पर्यावरण में परिवर्तन लाने की वकालत करना।

नैतिक और सशक्तिकरण अभ्यास (Ethical and Empowering Practice)

मूल्यांकन प्रक्रिया को सहयोगात्मक (Collaborative) और सशक्तिकरण-केंद्रित होना चाहिए, जो ग्राहक को परिवर्तन प्रक्रिया में भागीदार बनाए और उसकी अंतर्निहित क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करे।

 

2. मानव विकास के चरणों में प्रासंगिकता(Relevance Across Stages of Development)

सामाजिक कार्यकर्ता एरिक एरिक्सन के मनोसामाजिक सिद्धांत(Erikson's Psychosocial Theory) जैसे सिद्धांतों का उपयोग यह समझने के लिए करते हैंकि जीवन के विभिन्न चरणों में क्या संघर्ष और विकासात्मक कार्य (DevelopmentalTasks) होते हैं। यह ज्ञान हस्तक्षेप को चरण-उपयुक्त (Age-appropriate) बनाता है।

विकास का चरण (Stage of Development)

प्रासंगिक विकासात्मक कार्य (Relevant Developmental Task)

सामाजिक कार्य हस्तक्षेप की प्रासंगिकता (Relevance for Social Work Intervention)

शैशवावस्था/प्रारंभिक बचपन (Infancy/Early Childhood)

विश्वास बनाम अविश्वास (Trust vs. Mistrust), स्वायत्तता बनाम शर्म (Autonomy vs. Shame)

आकलन: माता-पिता/देखभालकर्ता की क्षमता, सुरक्षित लगाव (Secure Attachment) और बच्चे की विकासात्मक मील के पत्थर (Milestones) की जाँच। हस्तक्षेप: पालन-पोषण कौशल (Parenting Skills) प्रशिक्षण, परिवार का समर्थन।

मध्य बचपन/विद्यालय आयु (Middle Childhood/School Age)

उद्यम बनाम हीनता (Industry vs. Inferiority)

आकलन: शैक्षणिक प्रदर्शन, सहकर्मी संबंध, सामाजिक कौशल। हस्तक्षेप: स्कूल सामाजिक कार्य, समूह कार्य (Group Work) के माध्यम से सामाजिक कौशल बढ़ाना, व्यवहार संबंधी चिकित्सा (Behavioral Therapy)।

किशोरावस्था (Adolescence)

पहचान बनाम भूमिका भ्रम (Identity vs. Role Confusion)

आकलन: जोखिम भरा व्यवहार (Risk-taking), पदार्थ का उपयोग, मानसिक स्वास्थ्य (अवसाद, चिंता), परिवार और सहकर्मी के संघर्ष, पहचान का अन्वेषण। हस्तक्षेप: संकट हस्तक्षेप (Crisis Intervention), संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (CBT), स्कूल और समुदाय-आधारित कार्यक्रम।

प्रारंभिक/मध्य वयस्कता (Early/Middle Adulthood)

अंतरंगता बनाम अलगाव (Intimacy vs. Isolation), उत्पादकता बनाम ठहराव (Generativity vs. Stagnation)

आकलन: करियर, संबंध, तनाव का स्तर, वित्तीय स्थिरता, माता-पिता की देखभाल (Caregiving) के तनाव। हस्तक्षेप: विवाह/युगल परामर्श (Couple Counseling), कार्यस्थल परामर्श, केस प्रबंधन।

वृद्धावस्था (Late Adulthood)

संपूर्णता बनाम निराशा (Integrity vs. Despair)

आकलन: शारीरिक स्वास्थ्य, अकेलापन, शोक (Bereavement), सेवानिवृत्ति के लिए समायोजन, देखभाल की आवश्यकताएँ। हस्तक्षेप: दीर्घकालिक देखभाल नियोजन, वृद्धावस्था परामर्श, सामाजिक अलगाव को कम करने के लिए समूह।

 

 

3. सामाजिक कार्य मूल्यांकन के तरीके(Methods of Social Work Assessment)

मूल्यांकन एक सतत और गतिशील प्रक्रिया है जो ग्राहक की स्थिति,जरूरतों, जोखिमों और ताकतों की गहन समझ बनाने के लिए जानकारी एकत्र, विश्लेषण और व्याख्याकरती है।

 

(A) व्यक्तिगत और नैदानिक तरीके (Individualand Clinical Methods)

1.   मनोसामाजिक अध्ययन/जैव-मनो-सामाजिक-आध्यात्मिकमूल्यांकन (Psychosocial/Bio-Psycho-Socio-Spiritual Assessment):

o    विवरण:ग्राहक के जैविक (स्वास्थ्य), मनोवैज्ञानिक (भावनाएँ, विचार), सामाजिक (परिवार, समुदाय)और आध्यात्मिक (विश्वास) कारकों का एक व्यापक और संरचित संग्रह। यह अक्सर प्रारंभिकसेवन (Intake) के दौरान किया जाता है।

2.  पारिवारिक मूल्यांकन (FamilyAssessment):

o    विवरण:परिवार की संरचना, कार्यक्षमता, संचार पैटर्न, और संघर्षों को समझने के लिए।

o    उपकरण:जीनोग्राम (Genogram) (पारिवारिक इतिहास का चित्रमय प्रतिनिधित्व) और ईकोमैप(Ecomap) (परिवार और उसके बाहरी पर्यावरण के बीच संबंधों का चित्रमय प्रतिनिधित्व)।

3.  ताकत-आधारित दृष्टिकोण(Strengths-Based Approach):

o    विवरण:समस्याओं और कमियों के बजाय ग्राहक की अंतर्निहित क्षमताओं, लचीलेपन (Resilience),और संसाधनों की पहचान पर ध्यान केंद्रित करना।

4.  जोखिम और सुरक्षा मूल्यांकन (Risk andSafety Assessment):

o    विवरण:आत्म-नुकसान, दूसरों को नुकसान या दुर्व्यवहार (जैसे बाल दुर्व्यवहार) के जोखिम काआकलन करना, जो हस्तक्षेप की तात्कालिकता को निर्धारित करता है।

 

(B) डेटा संग्रह और उपकरण (Data Collection and Tools)

 

तरीका (Method)

उद्देश्य (Purpose)

साक्षात्कार और जुड़ाव (Interview & Engagement)

ग्राहक के साथ विश्वास-आधारित संबंध स्थापित करना (Engagement) और प्रत्यक्ष जानकारी, भावनाओं और अनुभवों को इकट्ठा करना।

अवलोकन (Observation)

ग्राहक के व्यवहार, शारीरिक स्वरूप, और पर्यावरण के साथ बातचीत को नोट करना, विशेषकर बच्चों और अक्षमता वाले व्यक्तियों के साथ।

मानकीकृत उपकरण/पैमाने (Standardized Tools/Scales)

अवसाद (PHQ-9), चिंता (GAD-7), या जीवन संतुष्टि जैसे विशिष्ट लक्षणों या डोमेन को मापने के लिए। ये मात्रात्मक डेटा प्रदान करते हैं।

रिकॉर्ड की समीक्षा (Review of Records)

अन्य एजेंसियों (स्कूल, स्वास्थ्य सेवाएँ, कानूनी) से पिछले इतिहास, निदान और हस्तक्षेपों की जानकारी प्राप्त करना।

संपार्श्विक संपर्क (Collateral Contacts)

परिवार के सदस्यों, शिक्षकों, या अन्य पेशेवरों से जानकारी प्राप्त करना (ग्राहक की सहमति से) ।

गोल अटेनमेंट स्केलिंग (Goal Attainment Scaling - GAS)

लक्ष्यों की उपलब्धि को वस्तुनिष्ठ रूप से मापने के लिए एक व्यक्तिगत उपकरण।