"आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वत"- ऋग्वेद
(हम सभी दिशाओं से अच्छे विचार प्राप्त करें).
छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा के एक प्रमुख संस्थान के रूप में, शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्वशासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय दुर्ग अपने छात्रों को भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक शिक्षा के सर्वोत्तम गुणों को संयोजित करने के अपने मिशन में दूरदर्शिता से संवलित है . समाज को महाविद्यालय द्वारा प्रदान की गई अनुकरणीय सेवा को नैक सहित कई राष्ट्रीय सर्वेक्षणों में उचित मान्यता मिली है। शिक्षा और किसी भी शिक्षण संस्थान का उद्देश्य तथ्यों के प्रकटीकरण से अधिक विद्यार्थियों में मूल्य-आधारित ज्ञान व रोजगारपरक कौशल का विकास करना होता है।विद्यार्थियों, विशेषकर समाज के अंतिम पायदान पर खड़े साधनहीन और वंचित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए हमारा संस्थान संकल्पबद्ध है। एक संस्थान के रूप में हमारा उद्देश्य प्रत्येक विद्यार्थी के लिए आनन्दपूर्ण शैक्षिक वातावरण का निर्माण करना एवं एक बहुमुखी बुनियादी शैक्षिक ढाँचे का निर्माण करना है।
अनुसंधान संबंधी मांगों को पूरा करने के लिए अत्याधुनिक बुनियादी ढांचा प्रदान करने के लिए यह महाविद्यालय जाना जाता है। इन संसाधनों में अत्याधुनिक प्रयोगशालाएं, कंप्यूटर लैब, सुसज्जित केंद्रीय पुस्तकालय, बायो रिसोर्स कॉम्प्लेक्स , व्यायाम शाला, खेल कॉम्प्लेक्स , इनक्यूबेशन केंद्र और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए बुक बैंक योजना शामिल है। देश के प्रतिष्ठित संस्थानों से उच्च शिक्षित प्राध्यापक अपनी अकादमिक दक्षता और प्रशिक्षकीय अनुभवों से विद्यार्थियों में निहित संभावनाओं का सतत परिवर्द्धन कर रहे हैं । उच्च शैक्षणिक मानकों के अलावा, कॉलेज में पाठ्येतर गतिविधियों की एक जीवंत विरासत भी है। हमारे छात्र खेल, रंगमंच, वाद-विवाद, संगीत, फोटोग्राफी और दृश्य कला के क्षेत्रों में सक्रिय भागीदारी के साथ अपने शैक्षणिक जीवन को संतुलित करते हैं। कॉलेज सभागार, एम्फीथिएटर और सेमिनार कक्ष, जो सभी नवीनतम ध्वनि और प्रक्षेपण प्रौद्योगिकियों से सुसज्जित हैं, शैक्षणिक और सह-पाठ्यचर्या संबंधी संवाद का एक व्यापक परिवेश प्रदान करते हैं।
हमारी संस्थागत मशीनरी को शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की एक समर्पित टीम द्वारा समर्थित किया जाता है। मैं खुद को सर्वप्रथम एक अध्येता, प्रशासक और एक मित्र के रूप में देखता हूं जो महाविद्यालय के समग्र विकास में सहायता करता है।
अंत में, मैं अपने संस्थान के भावी राष्ट्र निर्माताओं, शिक्षकों एवं गैर-शिक्षण कर्मचारियों का अपने परिवार और टीम के सदस्य के रूप में आह्वान करता हूँ कि हम अपने संस्थान की उत्तरोत्तर प्रगति और राष्ट्र निर्माण के लिए संगठित,समर्पित और सक्रिय भागीदारी निभाएं।
कवि जयशंकर प्रसाद के शब्दों में -
हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती'
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ है,
बढ़े चलो, बढ़े चलो!'
डॉ. अजय कुमार सिंह
प्राचार्य